Tuesday, May 25, 2010

धोये गये हम ऐसे कि बस पाक हो गये





तुम्हारी
अंजुमन से उठ के दीवाने कहाँ जाते ?

जो बाबस्ता हुए तुमसे वो अफ़साने कहाँ जाते ?


क़तील शिफ़ाई



वारस्ता इससे है कि महब्बत ही क्यों हो

कीजे हमारे साथ अदावत ही क्यों हो


ग़ालिब




रोने से और इश्क़ में बेबाक हो गये

धोये गये हम ऐसे कि बस पाक हो गये


ग़ालिब




Sunday, May 23, 2010

मज़ा है शराब का




ये फ़स्लेगुल, समां ये शबेमाहताब का

ला साकिया शराब, मज़ा है शराब का


-जिगर मुरादाबादी